Pages

Sunday 28 June 2015

राहगिरी एक सकारात्मक मनोरंजक पहल

ह  आजकल हम लोग इतने आलसी हो गए हैं की व्यायाम खेल कूद कसरत वर्जिश जैसे शब्द् हमारी शब्दावली से मिट गए हैं। और कुछ ऐसा ही मेरी जिंदगी में भी है। ऑफिस की थकान के बाद रात को देर से सोना सुबह देर से उठना और फिर शनिवार तो जैसे लाटरी लग जाती है । शायद ही कोई ऐसा रविवार होगा जब मेब चढ़ता सूरज देखा होगा। लेकिन इस दुनिया के साथ एक और दुनिया भिभाई जहाँ लोग सोमवार से शनिवार तक ही नहीं बल्कि रविवार को भींजल्दी उठते हैं। अब आप पूछेंगे की भाई राजीव ऐसा क्यों । वो इसलिए दोस्तों क्योंकि एक बहुत बड़ा झुण्ड ऐसे लोगों का आपको कनाट प्लेस रोहिणी द्वारका नॉएडा गुडगाँव में मिलेगा। अब आप कहेंगे राजीव भाई पहेली न भुजाओ सीधे बताओ ऐसा क्यों। राहगीरी जी हाँ राहगीरी के बारे में सुना होगा आपने एक ऐसी शुरुआत जिसने लोगों को अपनी और आकर्षित किया उन्हें प्रेरित किया की वो व्यायाम कसरत और अपने स्वास्थ्य के प्रति भी जागरूक रहे। लेकिन दोस्तों राहगीरी केवल इस सब का नाम नहीं यहाँ पे और भी कई इवेंट्स होती हैं जैसे डांस म्यूजिक और उससे भी ऊपर नुक्कड़ नाटक। सुबह सुबह तारो ताज़गी का दूसरा नाम है राहगीरी। और सबसे बड़ी बात ये की यहाँ कोई भी जेक अपनी कला का प्रदर्शन कर सकता है। सही माईने में सबके लिये एक सही और सकारात्मक शुरुआत ।

Friday 26 June 2015

सुबह की चाय

सच ही है की सुबह की चाय और अखबार एक साथ जब हों हाथ में तो दिमाग से साडी भसड निकल जाती है। अरे भाई आम आदमी के शब्दों में कहें तो गरमा गरम चाय के साथ गरमागरम खबरें पड़ने का आनंद ही कुछ और है । और खबरें भी बिलकुल चाय के टेस्ट की तरह कभी कड़क तो कभी फुस कभी ज्यादा मीठी तो कभी फीकी । पर क्या कीजिये जब इस शारीर के डाइजेस्टिव सिस्टम को दोनों अखबार और चाय की आदत सी पड़ गयी हो तो इनके बिना पिछले दिन का खाना हज़म नहीं होता। चलिए अब आज का काम भी शुरू करना है । ख़बरों में क्या था ये आगे के ब्लॉग में बताऊंगा। सुप्रभात ।

Wednesday 24 June 2015

दिल धडकने दो यादें ताज़ा हो आई - राजीव कोहली

आज काफी दिनों बाद ब्लॉग लिखने बैठा हूँ... यही सोचा है और निश्चय किया है की ब्लॉग लिखने को भी अब हर रोज़ का नियम बना लूँगा. लिखने से आपके मन को एक विशेष अनुभूति होती है. कुछ ऐसा लगता है की जो भी बोझ आपके मन में था या कुछ ख़ुशी के पल जो आप अपने मन में संजोये बैठे अकेले जी रहे थे वो पल आपको सभी के साथ बाट्ने का मौका मिल जाता है. खैर ये ब्लॉग मैं समर्पित करता हूँ बीते हुए दो दिनों को जिन दो दिनों में मैंने कई ख़ुशी के लम्हे जिए. इन दो दिनों ने मेरी ज़िन्दगी के कई बिखरे हुए पन्नो को एक किताब में फिर से संजो दिया. परसों ही अचानक जब facebook पे अपने अकाउंट को टटोल रहा था तो एक फ्रेंड रिक्वेस्ट आई देखा तो और किसी की नहीं मेरी कजिन सिस्टर ने रिक्वेस्ट भेजी थी. देखते ही ख़ुशी का ठिकाना न रहा. ऐसा लगा की इतने दिनों बाद facebook ने कुछ तो अच्छा किया मेरी सिंदगी में. यही नहीं सिस्टर से चाट करने का भी मौका मिला उसने कहा की facebook जैसे समुन्द्र में आखिर उसने अपने भाई को ढून्ढ ही लिया. अब आप सोचेंगे की इसमें कौन सी बड़ी बात हुयी भाई facebook पे तो आये दिन अपनों की या कभी परायों की फ्रेंड रिक्वेस्ट आती ही रहती है. लेकिन नहीं जनाब आप मेरी बात से सहमत होंगे की ये बड़ी बात थी जब आप ये जानेंगे की सिंदगी के रोज़ मर्रा  की मसरूफियत ने हम सभी को इतना दूर कर दिया है एक दुसरे से की मेरी सिस्टर जिसका मैं जिक्र कर रहा हूँ मेरे घर से फरलोंग की दूरी पर ही रहती है फिर भी शायद कई महीने बीत गए होंगे उसको और मुझे मिले हुए यही नहीं स्मार्ट फ़ोन भी काम नहीं आये और एक कॉल तक नहीं की जा सकी. इसलिए कल जब उसके साथ facebook पे मुलाकात हुयी तो चाहे ये मुलाकात २१वी सदी के तरीके से मिलना ही सही लेकिन दिल को बहुत तस्सली मिली और बेहद ख़ुशी हुयी. facebook ने एक और ख़ुशी दी मुझे कल मेरे पोस्ट ग्रेजुएशन के एक दोस्त ने मुझे पिंग किया और हमारे कॉलेज का एक नया whats app ग्रुप बना जिसमे मुझे सम्मलित किया गया. और वहाँ पे सभी पुराने दोस्तों से बात करने का ये जानने का की वो लोग कहाँ हैं मौका मिला. और इन्ही सब लोगों में से एक है मेरी सबसे प्रिय और सबसे करीबी दोस्त जिसको मैं कई सालों से ढून्ढ रहा था लेकिन कुछ अत्ता पता नहीं चल रहा था. आज अभी ये ब्लॉग लिखने से पहले उसके साथ चाट हुयी और जाना की वो भी दिल्ली के बेहद करीब ही रहती है लेकिन बस हम जानते ही नहीं the हम लोग कहा गुम हैं अपनी ज़िन्दगी में. बस इतना ही कहूँगा की thank you facebook. आज मैं बहुत खुश हूँ.

Tuesday 23 June 2015

क्रिसमस का तोहफा - लेखिका - ऋचा चतुर्वेदी




मिस्टर मेहरा का  परिवार  एक  मध्यम  वर्गीय था. दो  प्यारे   नठखट  बच्चे और पति और पत्नी . मिस्टर
मेहरा एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर थे और उनकी पत्नी हाउसवाइफ दोनों बच्चे स्कूल जाते थे. जब बच्चे बड़े होने लगे तो मिसेस महरा के पास कुछ खली समय बचने लगा. उन्होंने एक स्कूल में नौकरी कर ली आखिर वो भी एक क्वालिफाइड औरत थी और धीरे धीरे उनसे कई बच्चे घर पे भी पड़ने आने लगे . वैसे तो उन्होंने समय बिताने के लिए ये काम शुरू किया था ;यकीन अब वो इतनी मसरूफ रहने लगी की समय की कमी होने लगी.
घर में छोटे छोटे काम के लिए समय काम पड़ने लगा इसलिए उन्होंने अपनी  कामवाली को कहा की  वो शाम को थोड़ा ज्यादा देर तक रुक जाया करे, पर क्यूंकि कामवाली के पास पहले से ही इतने घर थे की उसने भी आगे अपनी बेटी को मिसेस मेहरा के छोटे मोटे काम करवा देने के लिए शाम को रुकने के लिए बोला .. धीरे धीरे सारा का सारा काम ही बच्ची के ऊपर आने लगा.
दोनों बच्चो को अपनी हम उम्र बच्ची के काम करना अच्छा नहीं लगता था. खासकर तब जब वह बच्ची बड़ी उम्मीद भरी नज़रों से उनका स्कूल का बैग और किताबें देखती थी
जब क्रिसमस की छुट्टियां आई और दोनों पति पत्नी ने बच्चों से कोई गिफ्ट मांगने को कहा  तो बच्चो ने उस कामवाली की बेटी का स्कूल में दाखिला करवाने की लिए कहा...यह सुन कर दोनों पति और पत्नी हैरान रह गए और उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ. अब शाम को और बच्चो के साथ मिसेस मेहरा उस बच्ची को भी पढ़ाने लगी. उस सोसाइटी के कुछ परिवारों ने मिलकर उस बच्ची के स्कूल का खर्च उठाने का जिम्मा भी ले लिया. अगर हम सब नागरिक लड़की को पढ़ाने के प्रति जागरूक हो जाएं तो इस देश को अवश्य प्रगति की और ले जा सकते हैं




असान दिशा-ज्ञान