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Monday 19 September 2016

तबदीली

हमारे सभ्य समाज में महिलाओं को ले कर सोच का दायरा बड़ा ही विचित्र और तिरछा है . एक तरफ तो अधिकार भी दिए तो और कर्तव्यों की लम्बी कतार भी. रोक टोक का दायरा इतना बड़ा है की, आजादी केवल बेड़ियों तक सिमित है एक एक गांठ खोलने में ही इतना वक़्त गुज़र जाता है की बुलाने पर लोट के नहीं आता है. पैरों में पायल, हाथों में कंगन जेसे गहनों की रस्सियाँ पहना दी गयी है. रीत रिवाज का टिक्का माथे पे चमका दिया. उस के उपर बंदिशों की जकड़न, और फिर शुरू होता है तबदीली का लम्बा इंतजार....

कुछ इलाकों में अभी भी औरत का वजूद आज भी वेसे ही है, जेसे सदियों से चला आया है. प्रकृति के अनुसार कमजोर, ढीला, पिछड़. .सुबह से शाम तक ऑफिस घर और रसोई की भाग दौड़ में अपना वजूद खो के बहती रहती है उमर भर. आजादी की पहेली को सुलझाती एक अधूरी तस्वीर को उभारती. सभ्यता और समाज की पतली दीवार को फांदने की कोशिश करती. इलज़ाम और बेगुनाही को खंगालती, अपमान और सम्मान को समेटती. फ़र्ज़ और परिस्थितियों की उंगली थामें, समय के साथ अटूट इरादों से चलती. कामयाबी की और बढाती कदम किस्मत को कोसती. क़ाबलियत और चुनोतियो से लड़ती, आत्मविश्वास से चलती . तरसती उस मुकाम को जो उस का हक़ है उसे पाने को. जो सिर्फ नींद में ही पूरा हो सकता है. जरा सोचो अगर ऐसा हो सकता नींद के खवाब को शकल दे पाती ? मुमकिन है बस पुरुष प्रधान देश में पुरुष अपनी सोच में तबदीली ले आये, और कदम के साथ कदम मिलाये. अपनी मानसिकता को स्वच्छ बनाये . 

by:RG

Monday 5 September 2016

टीचर्स डे

हमारे ग्रंथों में भी लिखा है गुरु गोबिंद दोनों खड़े का के लागू पाँव बलिहारी गुरु आपने गोबिंद दियो बताये. ...
शिक्षक हमारी बुनियाद का आधार होते है .सफलता की सब से पहली सीडी होते हैं . माता पिता के बाद एक टीचर ही ऐसा है जो चाहता है की हम कुछ बन जाये, कामयाब हो जाये .रास्ते से भटकने वाले बोहत होते है. मगर ऐसे कम ही लोग है जो भटकन को मंजिल दिखाते है.  ऐसे ही हमारे राजीव कोहली "सोच थिएटर ग्रुप" के डायरेक्टर. जो हर डगर पर हमारा मार्गदर्शन करते है, और अपने स्टूडेंट्स को बेहतर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते .व्यक्तिगत ही नहीं निजी तौर पर भी एक साधारण से इन्सान है . उनकी सब से बड़ी खूबी सकारात्मक रवैया ओर उर्जा .जो एक सुलझे हुए इन्सान की पहचान है . गुरु के पास इतना ज्ञान का भंडार होता है उनसे जितना भी सिखाने को मिले हमेशा कम ही लगता है . ये लालच है या भूख हर बार एक भिक्षुक के जेसे त्रिशना बढती ही जाती है . हर बार कुछ नया ही सिखाने को जो मिलता है .
कहने को तो बड़ा कुछ है , लेकिन मेरे शब्दों में वो बात कहा , बस इतना ही के ....

एक ज़िन्दगी निकल जाती है पहचान बनाने को, जिस मुकाम को आप ने पाया है सजदे में आप के सब ने प्यार बरसाया है.


 by:RG

असान दिशा-ज्ञान