Pages

Monday 13 July 2015

Soch Theatre Group kalptaru.blogspot.in

Check out @vivekrastogi's Tweet: https://twitter.com/vivekrastogi/status/620266997507489792?s=09

Sunday 5 July 2015

ओफ्फिस के अनोखे फंडे

ऑफिस जाना कौन पसंद नहीं करता । शायद कोई नहीं ☺पर क्यों कभी सोचा है आपने। चलिए आज इसी बात का परिकक्षण निरीक्षण करते हैं। करेंगे मेरे साथ। चाहूँगा की इस ब्लॉग पे आप अपने कमेंट्स जरूर पोस्ट करें।आखिर आप लोग भी काफी हद तक सहमत होंगे मुझसे। ऑफिस न जाना चाहने के कई कारण हो सकते हैं कुव्ह तो सच पर ज्यादातर बहाने । तो इस ब्लॉग में बहानो पर ध्यान केंद्रित करेंगे। कुछ आम बहाने यहाँ पर लिखते हैं पहले
1 अब क्योंकि हम सब में से ज्यादातर लोग ऐसा काम कर रहे होतें हैं जो वो करना नहीं चाहते थे लेकिन परिस्थितयां कुछ ऐसी थी की करना पड़ा । इसलिए काफी लोगों का तो मन ही नहीं करता और वो अक्सर ज्यादातर टाइम अपने बॉस या काम को कोसने में बिताते हैं । ओसे लोग हर प्रयास करते हैं हर दूसरे दिन ऑफिस न जाने के। कभी तबियत ख़राब खुद की ।कभी बीवी या बच्चे की तबियत ख़राब या फिर कभी किसी रोश्तेदार की बीमारी
2 अब कुछ ऐसे लोगों से मिलिए जिनका बचपन से लेकर आज तक कभी काम में मन लगा ही न हो। जी हाँ हैरान मत हों ऐसे भी लोग होते हैं। भाई इनके हिसाब से तो हर रविवार के बाद शुक्रवार आ जाना चाहिए।
लोग चाहें जैसे भी हों मकसद वही की किस तरह ऑफिस की टेंशन से निजात पाया जाये ।

Sunday 28 June 2015

राहगिरी एक सकारात्मक मनोरंजक पहल

ह  आजकल हम लोग इतने आलसी हो गए हैं की व्यायाम खेल कूद कसरत वर्जिश जैसे शब्द् हमारी शब्दावली से मिट गए हैं। और कुछ ऐसा ही मेरी जिंदगी में भी है। ऑफिस की थकान के बाद रात को देर से सोना सुबह देर से उठना और फिर शनिवार तो जैसे लाटरी लग जाती है । शायद ही कोई ऐसा रविवार होगा जब मेब चढ़ता सूरज देखा होगा। लेकिन इस दुनिया के साथ एक और दुनिया भिभाई जहाँ लोग सोमवार से शनिवार तक ही नहीं बल्कि रविवार को भींजल्दी उठते हैं। अब आप पूछेंगे की भाई राजीव ऐसा क्यों । वो इसलिए दोस्तों क्योंकि एक बहुत बड़ा झुण्ड ऐसे लोगों का आपको कनाट प्लेस रोहिणी द्वारका नॉएडा गुडगाँव में मिलेगा। अब आप कहेंगे राजीव भाई पहेली न भुजाओ सीधे बताओ ऐसा क्यों। राहगीरी जी हाँ राहगीरी के बारे में सुना होगा आपने एक ऐसी शुरुआत जिसने लोगों को अपनी और आकर्षित किया उन्हें प्रेरित किया की वो व्यायाम कसरत और अपने स्वास्थ्य के प्रति भी जागरूक रहे। लेकिन दोस्तों राहगीरी केवल इस सब का नाम नहीं यहाँ पे और भी कई इवेंट्स होती हैं जैसे डांस म्यूजिक और उससे भी ऊपर नुक्कड़ नाटक। सुबह सुबह तारो ताज़गी का दूसरा नाम है राहगीरी। और सबसे बड़ी बात ये की यहाँ कोई भी जेक अपनी कला का प्रदर्शन कर सकता है। सही माईने में सबके लिये एक सही और सकारात्मक शुरुआत ।

Friday 26 June 2015

सुबह की चाय

सच ही है की सुबह की चाय और अखबार एक साथ जब हों हाथ में तो दिमाग से साडी भसड निकल जाती है। अरे भाई आम आदमी के शब्दों में कहें तो गरमा गरम चाय के साथ गरमागरम खबरें पड़ने का आनंद ही कुछ और है । और खबरें भी बिलकुल चाय के टेस्ट की तरह कभी कड़क तो कभी फुस कभी ज्यादा मीठी तो कभी फीकी । पर क्या कीजिये जब इस शारीर के डाइजेस्टिव सिस्टम को दोनों अखबार और चाय की आदत सी पड़ गयी हो तो इनके बिना पिछले दिन का खाना हज़म नहीं होता। चलिए अब आज का काम भी शुरू करना है । ख़बरों में क्या था ये आगे के ब्लॉग में बताऊंगा। सुप्रभात ।

Wednesday 24 June 2015

दिल धडकने दो यादें ताज़ा हो आई - राजीव कोहली

आज काफी दिनों बाद ब्लॉग लिखने बैठा हूँ... यही सोचा है और निश्चय किया है की ब्लॉग लिखने को भी अब हर रोज़ का नियम बना लूँगा. लिखने से आपके मन को एक विशेष अनुभूति होती है. कुछ ऐसा लगता है की जो भी बोझ आपके मन में था या कुछ ख़ुशी के पल जो आप अपने मन में संजोये बैठे अकेले जी रहे थे वो पल आपको सभी के साथ बाट्ने का मौका मिल जाता है. खैर ये ब्लॉग मैं समर्पित करता हूँ बीते हुए दो दिनों को जिन दो दिनों में मैंने कई ख़ुशी के लम्हे जिए. इन दो दिनों ने मेरी ज़िन्दगी के कई बिखरे हुए पन्नो को एक किताब में फिर से संजो दिया. परसों ही अचानक जब facebook पे अपने अकाउंट को टटोल रहा था तो एक फ्रेंड रिक्वेस्ट आई देखा तो और किसी की नहीं मेरी कजिन सिस्टर ने रिक्वेस्ट भेजी थी. देखते ही ख़ुशी का ठिकाना न रहा. ऐसा लगा की इतने दिनों बाद facebook ने कुछ तो अच्छा किया मेरी सिंदगी में. यही नहीं सिस्टर से चाट करने का भी मौका मिला उसने कहा की facebook जैसे समुन्द्र में आखिर उसने अपने भाई को ढून्ढ ही लिया. अब आप सोचेंगे की इसमें कौन सी बड़ी बात हुयी भाई facebook पे तो आये दिन अपनों की या कभी परायों की फ्रेंड रिक्वेस्ट आती ही रहती है. लेकिन नहीं जनाब आप मेरी बात से सहमत होंगे की ये बड़ी बात थी जब आप ये जानेंगे की सिंदगी के रोज़ मर्रा  की मसरूफियत ने हम सभी को इतना दूर कर दिया है एक दुसरे से की मेरी सिस्टर जिसका मैं जिक्र कर रहा हूँ मेरे घर से फरलोंग की दूरी पर ही रहती है फिर भी शायद कई महीने बीत गए होंगे उसको और मुझे मिले हुए यही नहीं स्मार्ट फ़ोन भी काम नहीं आये और एक कॉल तक नहीं की जा सकी. इसलिए कल जब उसके साथ facebook पे मुलाकात हुयी तो चाहे ये मुलाकात २१वी सदी के तरीके से मिलना ही सही लेकिन दिल को बहुत तस्सली मिली और बेहद ख़ुशी हुयी. facebook ने एक और ख़ुशी दी मुझे कल मेरे पोस्ट ग्रेजुएशन के एक दोस्त ने मुझे पिंग किया और हमारे कॉलेज का एक नया whats app ग्रुप बना जिसमे मुझे सम्मलित किया गया. और वहाँ पे सभी पुराने दोस्तों से बात करने का ये जानने का की वो लोग कहाँ हैं मौका मिला. और इन्ही सब लोगों में से एक है मेरी सबसे प्रिय और सबसे करीबी दोस्त जिसको मैं कई सालों से ढून्ढ रहा था लेकिन कुछ अत्ता पता नहीं चल रहा था. आज अभी ये ब्लॉग लिखने से पहले उसके साथ चाट हुयी और जाना की वो भी दिल्ली के बेहद करीब ही रहती है लेकिन बस हम जानते ही नहीं the हम लोग कहा गुम हैं अपनी ज़िन्दगी में. बस इतना ही कहूँगा की thank you facebook. आज मैं बहुत खुश हूँ.

Tuesday 23 June 2015

क्रिसमस का तोहफा - लेखिका - ऋचा चतुर्वेदी




मिस्टर मेहरा का  परिवार  एक  मध्यम  वर्गीय था. दो  प्यारे   नठखट  बच्चे और पति और पत्नी . मिस्टर
मेहरा एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर थे और उनकी पत्नी हाउसवाइफ दोनों बच्चे स्कूल जाते थे. जब बच्चे बड़े होने लगे तो मिसेस महरा के पास कुछ खली समय बचने लगा. उन्होंने एक स्कूल में नौकरी कर ली आखिर वो भी एक क्वालिफाइड औरत थी और धीरे धीरे उनसे कई बच्चे घर पे भी पड़ने आने लगे . वैसे तो उन्होंने समय बिताने के लिए ये काम शुरू किया था ;यकीन अब वो इतनी मसरूफ रहने लगी की समय की कमी होने लगी.
घर में छोटे छोटे काम के लिए समय काम पड़ने लगा इसलिए उन्होंने अपनी  कामवाली को कहा की  वो शाम को थोड़ा ज्यादा देर तक रुक जाया करे, पर क्यूंकि कामवाली के पास पहले से ही इतने घर थे की उसने भी आगे अपनी बेटी को मिसेस मेहरा के छोटे मोटे काम करवा देने के लिए शाम को रुकने के लिए बोला .. धीरे धीरे सारा का सारा काम ही बच्ची के ऊपर आने लगा.
दोनों बच्चो को अपनी हम उम्र बच्ची के काम करना अच्छा नहीं लगता था. खासकर तब जब वह बच्ची बड़ी उम्मीद भरी नज़रों से उनका स्कूल का बैग और किताबें देखती थी
जब क्रिसमस की छुट्टियां आई और दोनों पति पत्नी ने बच्चों से कोई गिफ्ट मांगने को कहा  तो बच्चो ने उस कामवाली की बेटी का स्कूल में दाखिला करवाने की लिए कहा...यह सुन कर दोनों पति और पत्नी हैरान रह गए और उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ. अब शाम को और बच्चो के साथ मिसेस मेहरा उस बच्ची को भी पढ़ाने लगी. उस सोसाइटी के कुछ परिवारों ने मिलकर उस बच्ची के स्कूल का खर्च उठाने का जिम्मा भी ले लिया. अगर हम सब नागरिक लड़की को पढ़ाने के प्रति जागरूक हो जाएं तो इस देश को अवश्य प्रगति की और ले जा सकते हैं




Saturday 2 May 2015

APRIL RAINS- By Mudit Agrawal


April Rains.
relief from the rising heat
a phone call, to a lover
to meet beneath the dark clouds
and hold hands and to kiss,
and gather
memories, sweet in the
April Rains.
a beautiful wife too
holds hands
of her corpse husband,
a farmer
who died last night
of shock, a natural death,
at the view
of his devastated yield
and left behind
memories
of hard labour, lost
and a legacy
of debts.
April Rains.

Almighty - My Lord By Neha Shamshery

It’s all so uncertain
It’s all so unplanned
That to fret on it is
Waste of time

What you get
And what you want
Is not a matter of luck
instead god defined..

One day you giggle
the next moment you cry
one second you dream
in a flash it dies..

You strive, you struggle
You sweat, you toil
You resist, you fight
Just ask, why?

Question yourself
And then no one
Just set off
And let him decide

Friday 13 February 2015

समाज में आवारा हवाओं के रुख- लेखक Vivek Rastogi



(स्टेज पर हल्की रोशनी और, एक कोने में फोकस लाईट जली होती हैं और खड़ी हुई लड़की बोलती है)

    मैं एक लड़की जिसे इस समाज में कमजोर समझा जाता है, और वहीं पाश्चात्य समाज में लड़की को बराबर का समझ के उसकी सारी इच्छाओं का सम्मान किया जाता है। जब से घर से बाहर निकलना शुरू किया है तब से ही मैंने नजरों में फर्क समझना शुरू कर दिया है, पता नहीं कैसे, शायद भगवान ने लड़कियों को छठी इंन्द्रीय की समझ देकर हमें अच्छी और बुरी नजरों में फर्क करना सिखाया है। कुछ लोग हमारा दुपट्टा थोड़ा से खिसकने पर भी अपनी बहिन या बेटी मानकर हमें आँखों से ही आगाह कर देते हैं, पर ऐसे लोग समाज ने कम ही बनाये हैं। अधिकतर लोग दुर्दांत भेड़िये होते हैं जिन्हें तो बस अपनी आँखों में लड़की गरम माँस का लोथड़ा लगती है, कब मौका मिले और कब वे उसे उठायें और कच्चा ही खा जायें। लड़की जितनी असुरक्षित बाहर है उतनी ही घर में, जितने भी वहशीपन के किस्से सामने आते हैं, वे जान पहचान वालों के ज्यादा होते हैं।

    कुछ ऐसी ही मेरी कहानी है, जब मैंने घर से निकलना शुरू किया तो एक मजनूँ बाँके लाल ने मेरा पीछा करना शुरू किया, जल्दी ही पता चला कि वह मजनूँ मेरे घर के पास ही दो घर छोड़ कर रहता है। पता नहीं कहाँ से एक पुरानी कहावत याद आ गई, डायन भी सात घर छोड़ती है, पर यह मजनूँ तो तीसरे घर में ही..

    मेरी त्योरियाँ हमेशा चढ़ी ही रहती थीं, जिससे कभी उसकी बात करने की हिम्मत तो नहीं हुई पर मैं अंदर ही अंदर दिल में इतनी घबराती हुई आगे बढ़ती थी जिसे मैं बता नहीं सकती।

    एक दिन वह मजनूँ घर के चौराहे पर ही खड़ा था और मैं अपनी साईकिल से घर की और बड़ी जा रही थी,  मुझे वह पढ़ा लिखा लगता था, सलीके से पहने हुए कपड़ों में जँचता भी था। पर किसी का अच्छा लगना ही तो सबकुछ नहीं होता, मेरा ध्यान तो केवल और केवल पढ़ाई की ओर लगा हुआ था, आखिर किसी और तरफ ध्यान लगाने की न मेरी उम्र थी और न ही कोई वजह।

    मेरी साईकिल को किसी अज्ञात सी शक्ति ने रोका, पता नहीं एकदम क्या हुआ कि मेरी साईकिल रुक गई, जबकि मैंने न ब्रेक लगाया और न ही साईकिल की चैन उतरी थी।

सीन
    आवाज आई मैं आपको पसंद करने लगा हूँ। तब मेरे ध्यान मेरी साईकिल के हैंडल को पकड़े हुए उसी मजनूँ की तरफ गई। वह मजबूती से मेरी साईकिल का हैंडल पकड़े हुए खड़ा था और मैं उसकी इस हिमाकत से अंदर तक हिल गई, समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ । मैं चुपचाप थी और साईकिल को पैडल मारकर आगे जाने की कोशिश करने लगी, पर मेरी साईकिल मेरा साथ नहीं दे रही थी, मैंने अपनी पूरी ताकत बटोरकर उससे कहा मेरी साईकिल छोड़िये और मुझे घर जाने दीजिये, ऐसी बदतमीजी करते हुए क्या आपको शर्म नहीं आती है ?”

    वह बोला - शर्म तो आती है, पर क्या करें ये कमबख्त दिल है कि मानता नहीं, और यह बदतमीजी नहीं, हम तो आपसे मोहब्बत का इजहार कर रहे हैं, जब तक आपको हम बतायेंगे नहीं आपको पता कैसे चलेगा

    हम घबराते हुए बोले देखिये हमें ये बकवास नहीं सुननी है, और हमसे फालतू की बातों में हमारा वक्त बरबाद मत कीजिये, हम पढ़ाई करते हैं और हमें आप परेशान कर रहे हैं

(स्टेज पर हल्की रोशनी और एक कोने में फोकस लाईट में लड़की बोलती हुई)

    इस तरह से उस दिन तो हम किसी तरह से अपने आप को बचाकर घर आ गया, घर पर इस घटना का हमने कोई जिक्र नहीं किया, अगर हम घर पर इस घटना का जिक्र करते तो शायद पापा और मम्मी घबरा जाते और उनको हमारी कुछ ज्यादा ही फिक्र हो जाती।

सीन

    शाम को वही लड़का फिर से हमारे घर पर आया हुआ देखकर हमें परेशानी महसूस हुई, वह अपनी बहिन के साथ मम्मी के पास आया हुआ था, उसकी बहिन मम्मी से स्वेटर बुनने की कुछ तरकीबें सीख रही थी। हमने वहीं पर रखे हुए अपने कंप्यूटर को चालू किया और फेसबुक चालू कर अपने स्टेटस देखने लगे।

    वह लड़का हमारे पास आकर बोला अरे वाह आप तो फेसबुक और ट्विटर दोनों का उपयोग करती हैं, आप तो तकनीक के साथ कदम ताल मिलाकर चलती हैं, वैसे हम भी तकनीकी का काफी उपयोग करते हैं, अब जब आप सामाजिक ताने बाने में खुद को व्यस्त रखती हैं तो हमें भी अपने आप को रखना होगा, क्यों नहीं आप हमें फेसबुक पर दोस्त बना लेती हैं, तो आपके विचार हमें पता चलते रहेंगे और हमारे आपको ?”

    हमने कहा जी बहुत बहुत धन्यवाद, हमें अपने विचार केवल अपने दोस्तों तक ही पहुँचाने होते हैं, किसी भी अजनबी को हम अपने विचार बताना पसंद नहीं करते हैं, और खासकर उनको तो बिल्कुल भी नहीं जिन्हें सड़क पर साईकिल का हैंडल पकड़कर लड़कियों को रोकने की आदत हो, अच्छा ये बताओ कि तुमने यह बदतमीजी आज तक कितनी लड़कियों के साथ की है ?”

    वह लड़का बोला आप उसे बदतमीजी का नाम मत दीजिये, वह तो हम केवल आपको अपने दिल का हाल बता रहे थे, कि कैसे हम आपके पीछे पागल हैं और हममें इतनी हिम्मत भी है कि आपको बाजार में रोककर अपने दिल के हाल से रूबरू भी करवा सकते हैं, काश कि आप हमारे दिल के हाल के सुनकर हमारी हालत पर रहम खायें
हमने कहा अपने दिल का हाल उसे सुनाईये जो सुनना चाहता है, हमें न सुनवाईये, अगर हमें ज्यादा परेशान किया तो आपको चप्पलों और लप्पड़ों के साथ अपना भविष्य गुजारना होगा, कहीं ऐसा न हो कि हमारी मोहब्बत में आपका जनाजा निकल जाये, आपकी बेहतरी इसी में है कि आप हमें परेशान न करें और हमारे रास्ते से हमेशा जुदा ही रहें

    वह लड़का बोला चलो हम आपके घर तक तो आ ही गये हैं, धीरे धीरे आपके फेसबुक ट्विटर और दिल तक भी पहुँच ही जायेंगे, देखते हैं कि आप कब हमें अपनाते हैं

(लाईट कम होती है और लड़की पर फोकस होता है, लड़की संवाद कहती है -)

    जी तो मेरा ऐसे कर रहा था कि उसका मुँह वहीं तोड़कर उसे उसकी नानी याद दिला दूँ पर पता नहीं मेरे अंदर की हिम्मत इतनी भी नहीं रही थी कि मैं वहीं बैठी अपनी मम्मी और उसकी बहिन को उस लड़के की बदतमीजी के बारे में बता पाऊँ, पता नहीं ऐसी हिम्मत के लिये लड़कियों को क्या खाना चाहिये, जिससे वक्त रहते कम से कम ऐसे मजनुओं को जबाव तो दे पायें और अपनी कमजोरी को उनका हथियार न बनने दें।

मैं कमजोर नहीं हूँ, बहुत हिम्मती हूँ
बस समाज से, परिवार से, उनके लिये ही डरती हूँ
सारा डर केवल हमारे हिस्से में क्यों लिखा है
क्यों इन आवारा हवाओं पर समाज का काबू नहीं है
कब ये आवारा हवाएँ हमें छूने से परहेज करेंगी
आखिर कब इन हवाओं का रुख बदलेगा
आखिर कब समाज की दीवारें इन्हें रोकेंगी
कब ये हवाएँ साफ होंगी
और कब इन हवाओं से घुटन खत्म होगी
कब ये हवाएँ बदलेंगी,
और कब हम साँस ले पायेंगे ।

    और उसी शाम जब मैं फेसबुक स्टेटस देख रही थी कि एक नये दोस्त का नोटिफिकेशन दिखा, मैं हमेशा दोस्त बनाने के पहले प्रोफाईल की जाँच पड़ताल जरूर कर लेती हूँ, और उस दिन भी की तो देखा, पाया कि वही लड़का है जो मुझे परेशान कर रहा है, मैंने उसे दोस्त नहीं बनाया और तभी मैंने अपने ट्विटर पर एक नया फॉलोअर देखा यह भी वही था, मैंने झट से उस प्रोफाईल को भी ब्लॉक किया। जिंदगी अपनी रफ्तार से चल ही रही थी, कुछ दिन गुजरे ही थे कि मेरी जिंदगी के ठहरे हुए पानी में फिर से किसी ने कंकर मारकर मेरी जिंदगी को उलट पुलट कर दिया। मेरी सहेली ने बताया कि उसी लड़के ने मेरे कुछ फोटो किसी ने फेसबुक पर डाल दिये हैं, बात अब बिगड़ने लगी थी, मैंने निश्चय किया कि मैं अपने मम्मी और पापा को आज सब कुछ बता दूँगी, और फिर बेहतर है कि हम इस समस्या से मिलजुलकर लड़ें।

सीन

    पापा ने उस लड़के को बुलाकर बहुत समझाया बेटा हम और आप बहुत ही सभ्य घरों से ताल्लुक रखते हैं, और क्यों तुम मेरी बेटी को इस तरह से परेशान कर रहे हो, इससे नाहक ही सब परेशान हो रहे हैं और मेरी बेटी भी अपनी पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पा रही है, बहुत ही ज्यादा मानसिक आघात तुमने दे दिया है, हमारी बेटी को हमने बहुत नाजों से पाला है, उसके पढ़लिख कर कुछ बनने के अरमान हैं, और तुम अब उन सपनों को पाने में बाधा बन रहे हो

    उस लड़के ने कहा अंकल जी, मैं तो केवल दोस्ती करना चाह रहा था, कि कोई अच्छा दोस्त हमारा भी हो, हमने तो कभी नहीं चाहा कि हमारे दोस्त के अरमान पूरे न हों, हम भी चाहते हैं कि उसके सपने पूरे हों, हम कभी भी परेशान नहीं करेंगे

    पापा ने कहा तो फिर मेरी बेटी के जो फोटो तुमने फेसबुक और ट्विटर पर डाल रखे हैं, क्या वह भी परेशान करने के लिये नहीं हैं, मैं तुम्हारी इस हरकत को किस नजरिये से देखूँ

    उस लड़के ने कहा वह तो मैंने केवल इसलिये डाल रखे हैं कि ये नहीं दिखे तो कम से कम मैं फोटो ही देख लूँ और अपने मन को तसल्ली दे दूँ

    पापा ने कहा अब तुम बदतमीजी पर उतर आये हो, एक तो चोरी और ऊपर से सीनाजोरी, अगर तुमने फोटो आज को आज ही नहीं हटाये तो मुझे पुलिस के पास जाना पड़ेगा, जब चार डंडे पड़ेंगे तो अपने आप तुम्हारे नये दोस्त बनाने के अरमान ठंडे पड़ जायेंगे

    उस लड़के ने कहा अरे! अंकल जी आप ना ज्यादा टेन्शन न लिया करो, वैसे तो अब आपने इतनी बात कर ही दी है तो अब देखिये हम क्या करते हैं, आपकी बेटी के सारे फोटो तो हटा ही देंगे पर साथ ही हम परेशान करना भी बंद कर देंगे, हमें पुलिस की वर्दी से बहुत डर लगता है (व्यंग्य से कहते हुए)

    पापा ने गुस्से में कहा अब अगर मुझे तुम्हारी किसी भी हरकत की खबर लगी तो मैं तुम्हारे साथ क्या करूँगा, तुम्हें पता भी न चलेगा, तो बेहतर है कि आज के बाद कभी भी न घर के पास फटकना और न ही मेरी बेटी के पास
लड़का चला जाता है ।

(सुबह का सीन है, चिड़ियाओं के चहचहाने की आवाज आ रही है - )

    अगले दिन सुबह लड़की साईकिल पर अपने स्कूल का बैग लटकाये हुए जा रही है, तभी अचानक पास जाते स्कूटर पर हेलमेट पहने किसी लड़के ने उसके मुँह पर एक शीशी से तेजाब फेंक दिया।

    मैं जोर से चिल्लाई ये क्या है मेरे मुँह पर, ये जल क्यों रहा है, मुझे मेरे चेहरे पर इतना गर्म झाग क्यों लग रहे हैं, क्या किसी ने मेरे चेहरे पर मिर्ची फेंक दी है या कुछ और.. मेरा पूरा चेहरा जल रहा है.. झुलस रहा है

(स्टेज पर पीछे बहुत सी आग की लहरें दिखाते हैं)

(पीछे से सामूहिक कोलाहल अरे किसी ने तेजाब फेंक दिया है”, तभी कोई पहचान गया अरे बिटिया चलो मैं तुम्हें अस्पताल ले चलता हूँ और घर पर भी खबर कर देता हूँ)

    रास्ते भर में यही सोचती रही कि क्यों ये तेजाब मुझ पर फेंका गया और क्यों मेरे लिये ये जलन है किसी को मेरे प्रति, बस बहुत तेज चिल्लाने की इच्छा हो रही थी, फफक फफक कर रोने की इच्छा हो रही थी, किसी ने मेरे सारे सपनों को क्षणभर में ही कुचल दिया था। कहीं कोई दूर काश मेरे लिये भी कोई सपनीली दुनिया होती जहाँ मैं अपने सारे अरमानों और सपनों को पूरा कर सकती। यह केवल मेरा चेहरा ही नहीं मेरी आत्मा जल रही थी, जल के छलनी छलनी हो रही थी, क्यों ये सब हमें भोगना पड़ता है, किसी ने तेजाब का इस तरह का उपयोग क्यों करना शुरू किया, इतनी जलन कि मेरे चेहरे के रोम रोम से मेरे माँस के पल पल बहने का अहसास और तेज हो रहा था, अंदर तक उस तेजाब की आग भभक रही थी, और चारों तरफ बेचारी लड़की के सांत्वना वाले शब्दों को मैं सुन पा रही थी। ऊफ्फ मेरे चारों तरफ एक अजीब तरह की घुटन हो रही थी, तभी पापा मेरे पास आये और मैं उनके स्पर्श को पाकर ही फफक फफक कर रो पड़ी।

    पापा कह रहे थे बेटी मुझे तुम्हें इस तरह देखकर बहुत ही दुख हो रहा है, पता नहीं किसे हमारे से ऐसी दुश्मनी थी जिसने ये घिनौना काम किया है, ये केवल दिन दो दिन की जलन नहीं है, ये तो पूरे जीवन की पीड़ा है, अभी ये जख्म है, और हर जख्म धीरे धीरे ही सूखता है, मेरी प्यारी बेटी तुम इस जख्म से परेशान न होना, तुम्हें न ही किसी से लड़ने की जरूरत है और न ही किसी की सांत्वना की, मुझे पता है तुम बहुत बहादुर हो और कभी भी किसी से न हारने वाली हो, वीर वही होते हैं जो अपने आप में सिसक लें पर दुनिया को कानों कान खबर न होने दें, दुनिया वाले बस सोचते ही रहें कि आखिर इनके पास इतनी हिम्मत आती कहाँ से हैं, बेटी तुम्हें अपने सारे सपने सच करने हैं, ये तो हमारे लिये जिंदगी की परीक्षा है और हम इस परीक्षा को बहुत अच्छे से उत्तीर्ण करेंगे, बस तुम अपना साहस कम मत होने देना, तुम्हारा परिवार हमेशा ही तुम्हारे साथ है

(स्टेज पर गहन अंधकार है और मंच पर एक कोने में फोकस लाईट जलती है और अपने बारे में बताती है)

    मैं बस उस दिन को अपने जीवन का काला दिन मान कर भूलना चाहती हूँ, पर कभी कोई जख्म भी जीवन में भरा है। हाँ अगर समय की दवा न होती तो नासूर जरूर बन जाता है, पर मैंने अपने जख्मों पर समय का मल्हम कुछ इस तरह से लगाया कि मैं दीन दुनिया को भूल बैठी, हाँ मुझे ठीक होने में काफी समय लगा । काफी लोग सांत्वना भी देते थे, पर मुझे उन लोगों पर हँसी आती थी, कि सांत्वना की जरूरत मुझे नहीं उन्हें खुद को है, काश कि समाज को हम यह भी शिक्षा दे पाते, काश कि हम अपने घर के लड़कों को मानसिक रोगी बनाने से रोक सकते, काश कि ये दर्द और जला हुआ चेहरा जो किसी की शरारत या हिकारत को शिकार हुआ था, न होता ।

(पार्श्व में हल्की रोशनी होती है और ऑनलाईन बिजनेस करते हुए दिखाया जाता है, एक लेपटॉप और कुछ लोग ऑनलाईन ब्रांडिग की प्रेजेन्टेशन उस लड़की को दिखा रहे होते हैं, लड़की का चेहरा रूमाल से ढंका है)

    मैंने अपना पूरा समय और पूरी ऊर्जा अपने सपने अपने अरमानों को पूरा करने में लगा दी, और मैं बहुत ही अच्छे से अपने आप को फाईंनेशियली सैटल कर पाई हूँ, आज मुझे मेरे परिवार पर गर्व है कि मैं उन्हीं लोगों के कारण अपना खुद का इतना बड़ा ऑनलाईन बिजनेस कर पाई हूँ। बस यहाँ दुख इतना ही है कि कोई मेरे चेहरे को नहीं जानता, मेरे बनाये हुए ब्रांड को जानते हैं। मेरी सफलता की कहानी पूरे समाज की सफलता की कहानी है।



स्धन्यवाद- मेरे गुरु, परम मित्र, और बड़े बेटा- श्री विवेक रस्तोगी- ये पोस्ट आप उनके अपने ब्लोग "कल्पत्रू" पे भी पड़ सकते हैं।

Wednesday 11 February 2015

आगोश - लेखिका- नवीन राणा



अब थक गए हम इन् तन्हाइयों से लड़ते लड़ते,
अब ये भी याद नहीं के जाना कहाँ है ....

अब बंद होने लगी हैं पलकें भी भरी हो कर,
भूल गए के नजारा क्या है....

अब चाहत  नहीं दुनिआ को पाने की ,
वरना सपना तो आस्मां छू जाना है....

अब पनाह दे दे अपने आगोश में ले कर ,
अब इस पल तेरी बाँहों में ही सो जाना है.....

असान दिशा-ज्ञान