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Monday 11 July 2016

ज़िन्दगी एक सवाल
 बरसात हो रही है कॉफ़ी का जायका लेते हुए खिड़की के पास खड़ा सोच रहा था की जेसे मोसम कभी एक सा नहीं होता वेसे ही हर दिन एक सा नहीं होता .
आज का दिन बड़ा ही बदसूरत सा था . ज़िन्दगी जेसे दम तोड़ रही थी , धकम पेली में गुज़र करते हुए प्याज के छिलके के जेसे रोज़ एक सुबह कोहनी मार के नयी उलझनों में धकेल देती है .(जिस तरह से प्याज में लेयर्स होती है कुछ ऐसी ही ज़िन्दगी है ,प्याज काटने पर आंसू आते है वेसे ही लाइफ में कुछ भी हो अच्छा या बुरा पलके अक्सर नम हो ही जाती  है) कहते है हर सवाल का जवाब उसी सवाल में होता है . ज़िन्दगी मेरा सवाल है ? घिसे हुए गाडी के पहियों सी ये ज़िन्दगी कही खुद्काशी कर रही है . रोज़ एक सफा लिखते लिखते कलम भी डंडी से हो गयी अब तो ...
आज ,गुलजार साहब की नज़म याद आती है की उबलती हांडिया इतनी सारी सभी ने ज़िन्दगी चूलेह पे रखी है ना पकती है ना गलती है मगर ये ज़िन्दगी है उमीदे डाल रखी है बिना छिले बिना गिट्टक तोड़े.......      
लगता है, मेरा ज़िन्दगी से जो इश्क था शायद वो अधुरा ही रह गया . दोनों हाथो से समेटने चला था मगर कतरा - कतरा कर के मेरा सारा वक़्त पानी सा बह गया. खवाहिशे अभी भी झिरी से झांक रही है. शिकायत किस से करू ज़माने से जो किसी का सगा नहीं ? या बहाना हालत का दू . पिघले अरमान मेरे मैंने फुरसत से बुने थे कभी पलकों पर मोती पिरोते नज़र आते है अभी....  कभी अहसास ख़ुशी का भी होता था, जब अंधरे कमरे में सपनो को गले से लगा कर सोता था . असूल थे कुछ मेरे सिर्फ सोना और जिंदा रहना तो ज़िन्दगी नहीं . लालच की गुठली कोई तो ला दो यारो जिंदा हूँ अभी अहसास ही करा दो न यारो. कड़कती हुई बिज़ली में भी कुछ साफ़ नज़र नहीं आता . ज़िन्दगी की पहेली का कोई ज़वाब नज़र नहीं आता . सामना हो कभी तुम्हारा तो पैगाम लगा देना ज़रा हमारा उसे ढूढ़ते हुए थक सा गया हूँ .  ज़िन्दगी तू बड़ी मज़ेदार है कहने से अब रुक सा गया हूँ ......
by : RG



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असान दिशा-ज्ञान