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Friday 9 January 2015

डाकिया - ऋचा चतुर्वेदी द्वारा लिखित



काली साईकिल बड़ा झोला l
निज़ी सन्देशे सरकारी चोला ll

जी हाँ ! वही डाकिया जो डाँक लाता था l
अपने  कंधे पे  सन्देशे  टाँक  लाता  था ll

लाया हो पहली तन्खाह का मनी-ओडर या नयी नौकरी की बधाई l
फिर डाकिये की खातिर एसी जैसे आया हो नया जमाई ll

उस नीले अन्तेर्देशि ने तो गुढिया का रिश्ता जोड़ा था l
एक छुटके से कागज ने गली के चार लड़कों का दिल तोड़ा था ll

बिमला बुआ की चिट्ठी सबसे  अजब  अनोखी होती थी
“बाकी सब ठीक हैये लाइन हर लाइन के बाद जरूरी होती थी  ll

बढों को प्रणाम और बच्चो को प्यार l
बाबूजी की दो लाइने अम्मा पढ़वाती कितनी बार ll

वेसे चिट्ठियाँ तो कईयों की पढ़ता था बूढ़े काका की लिख भी देता था  l
कितने सलीके से उनकी बेचेनी  को उसने शब्दो मे  समेटा था ll

दुख भरे तार भी बिना झिझके पहुंचाता था ,l
बस स्याह चहेरे पे कुछ पीलापन उभर आता था ll

इतने बरसों में बन बैठा था आधे गाँव का राजदार  l
बहुत उम्मिदो से  होता था उसका इंतजार ll

हाउस-फुल जाता था उसका पी वी आर (PVR)  l
जहाँ चिट्ठियाँ थीं हीरोइन और विलेन था तार ll

चिट्ठी सबको चाहिए पर तार से इनकार l
संदेशों के खेल मे डँकिया था सुपर-स्टार ll

जी हाँ ! वही डान्किया जो डाँक लाता था l
अपने  कंधे पे  सन्देशे  टाँक  लाता  था ll

1 comment:

  1. Mere bachpan ke din yu aankho ke saamne tairne lage iss hridya sparshi kavita ko padd kar.... Zamaana badal raha hai....aur pragati ki talaash me naa jaane kya kya badal raha hai.. .. Per wo guzra waqt meethi yaado sa zehen me basaa hua hai.... Aapki kavita ka nirdosh chitran wo saare chitr dikha deta hai jo ek kavi mann ki visheshta hai.
    Richa didi aapki agli kavita ka intzar rahega.


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असान दिशा-ज्ञान