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Sunday 11 January 2015

अस्मिता के साथ मेरे सफर की शुरुआत- लेखक राजीव कोहली

यह ब्लॉग समर्पित है मेरे गुरु, मेंटर श्री अरविंद गौर सर के लिये। मुझे आज भी याद है वह शुक्रवार का दिन था एक बहचर्चित फिल्म, "टू स्टेट्स" रिलीस हुई थी। आफिस में सभी फिल्म देखने जाने का कार्यक्रम बना चुके थे। इससे पहले कई हफ्तों से मैं बड़ी शिद्दत से ढूंड रहा था, एक ऐसा थियेटर ग्रूप जहां पे अच्छा थियेटर होता हो। कई दिन तक ढाके खाने के बाद मेरे आफिस में काम कर रहे एक सहकर्मी से पता चला अस्मिता के बारे में। मुझे कहा गया, बल्कि यूं कहूँ तो येह सुझाव दिया गया की नाटक देखने आये और अरविंद सर से मिलें। 

अगर उन्होने बुलाया तो ही आप अस्मिता का अंग बन पायेंगे। इससे पेहले कभी कोई नाटक नहीं देखा था। मन में बहुत विचार विमर्श चल रहा था। जाऊँ या नहीं जाऊँ। लेकिन थियेटर में शामिल होने का ऐसा जूनून था की जाने का फैसला किया। और सच पूछिये, अपने को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ, की मैने जाने का फैसला किया। अपनी लाइफ का शायद सबसे सही फैसला था। नाटक का नाम था "दस कहानियाँ" जिसमे विभिन् लेखकों की बेहतरीन कहिंयों को मंचित किया गया। सच मानिये वो एक घंटे तीस मिनिट का नाटक तीन घंटे की किसी भी फिल्म देखने से बहुत उत्तम अनुभव था। उसमे हासना था, व्यंग था, एमोशन था, रोना था। हर कहानी दिल को चू गयी। और वहीं से शुरू हुआ मेरा सफर अस्मिता के साथ। दिल से शुक्रगुज़ार हूँ, अरविंद सर का, और शिल्पी मॅम का, और ईश्वर का की मुझे ये मौका मिला है की मैं अस्मिता के साथ जुड़ा हूँ।



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