जीवन इश्वर की दी गयी एक अमूलय भेंट है। पर क्या हम और आप इस जीवन की मेहत्वता को समझ पाएं है। शायद नहीं, या शायद कोशिश करते तो हैं पर समझ नहीं पाते। खैर, वजह चाहे जो भी हो सच तो ये है की जीवन के अर्थ को समझ पाना कोई आसान काम नहीं है। जब एक नवजात शिशु अपनी पहली सांस लेता है तो शायद उसे भी ये ज्ञान नहीं होता की वो इस सृष्टि की सबसे मुश्किल पहेली का एक पात्र मात्र है। बच्चे भगवान् का रूप होते हैं, शायद इसीलिए कहा जाता है क्योंकि बच्चों में कोई कल छल कपट नहीं होता। उनके लिये सच सच ही होता है जिसे किसी भी तरह का झूठ अपने परदे में छुपा नहीं सकता। ये हम ही हैं जो बच्चों को बताते हैं की झूठ भी कुछ होता है। इस जीवन की दौड़ में हम सुख के पीछे भागते रहते हैं लेकिन ये भूल जाते हैं की भगवान् हर मोड़ पर दुखों की आग में तपा के हमे सुखों को महसूस करने का अनुभव करवाते हैं। जैसे कोई काम किये बिना उसका फल नहीं मिल सकता उसी तरह दुखों का सामना किये बिना सुख का अनुभव सार्थक नहीं है। इंसान ने ही जात पात के भेद भाव बना डाले। इंसान ही है जिसने धर्म के नाम पे समाज को बाँट दिया। इंसान ही है जिसने मोह भाव को खुद से कभी अलग नहीं होने दिया।कोई धर्म हमे धर्म के नाम पे आतंक फैलाना या लोगों को मारने के लिए नहीं सिखाता। सिखों के गुरु श्री धन धन गुरु गोविन्द सिंह जी ने भी शस्त्र उठाये पर अपनी और सिखों के बचाव के लिए। श्री राम ने भी शस्त्र उठाये तो अधर्मियों का नाश करने के लिए। अर्जुन ने भी कुरुक्षेत्र में अपनों के सामने शस्त्र अधर्म का नाश करने के लिए उठाये थे। तो फिर अब हम क्यों बेगुनाह लोगो को मारने के लिए शस्त्र उठाते हैं।चलिये इस जीवन को जीने लायक बनाये। चलिये इस आमुलय जीवन के मूलय को समझें।
एक दूसरे से जुड़ने की और समाज में कुछ सकारात्मक बदलाव लाने कि एक छोटी सी कोशिश
Wednesday, 14 January 2015
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