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Sunday, 18 January 2015

महक - लेखक मोहित






पहली बारिश की बूंदें
मिट्टी में मिलने को
कैसी बेताब थी
... आतुर 

बेसब्र सी बूंद मिट्टी पर गिरि
अपने गिरने का निशान छोड़ा
और मिट्टी में कहीं खो गयी
... नहीं नहीं खोयी नहीं
जज़्ब हो गई 

ओर अपने जज़्ब होने पर
दे गई सौंधी सी महक
मिलन की महक...

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असान दिशा-ज्ञान