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Monday, 29 August 2016

सकारात्मक सोच

आज सुबह से ही बादल बरस रहे थे, तो सोचा थोडा वक़्त बहार बिताया जाये. बरसात के बाद जब ठंडी हवा चलती है तो बड़ा ही मीठा सा अहसास होता है . सुहाना मोसम कभी एक सा नहीं रहता .धीमी हवा शीतल महकदार, ज़रा सा बहाव तेज़ की आंधी का रूप ...

हमारी निजी ज़िन्दगी भी कुछ कुछ ऐसी ही है मेल खाती है, ज़रा सा किसी दूसरी और तवाजो दिया इधर रेत की जेसे फिसली हाथ से, बावरी लहर से चली जाती है . हवा में उड़ना चाहते हो तो, सही वक़्त सही निर्णय हो . अपने अंदर एक सुलगन रहने दो इधर हवा चली उधर धूँआ उठा यहाँ चिंगारी ने आग पकड़ी . फिर इस तूफान को कोई नहीं थाम सकता .गिर के उठाना वही जानते है जो हार क्या है नहीं जानते है .लेकिन किसी को पाना और किसी को हासिल करना दो अलग पहलू है . एक सत्य है तो दूसरा यथार्थ .तस्वीर एक ही है बस वर्णन में नज़र का फेर है . समझदारी समय के साथ समझोता करने में ही है. प्रयत्न ही एक मात्र डगर है .अपनी मंशा की बीसाक कुछ इस तरह से बिछाना की परिस्थियों को शय से मात दे जाना .ना नफरत से ना क्रोध से ना ताकत से ना विरोध से बल से और ना ही छल से जीत तो हासिल होती है केवल सकारात्मक सोच से .


 by: RG

Monday, 22 August 2016

सपने

गहरी नींद में थी सपने में कही भागी दौड़ी जा रही थी.. अलारम बजा, थराह के जागी. ऐसा क्या पीछे छूट गया जो दिन की रौशनी में नहीं दिखा ....
बंद पलकों के नीचे अँधेरा , उस काले गहरे अँधेरे में खवाबों की रोशनी, जो उस उजाले की और इशारा करती है. जहा सिर्फ ख़ुशी और संतुष्टि मिलती है. चाहतों को पूरा करने के लिए यकीन और उम्मीद ऐसे दोपहिया वाहन है, जिस के बिना गाडी चलना तो दूर हिल भी नहीं सकती.  गर मुझे खुद पर यकीन है और उम्मीद का दामन है. तो कोई भी ताकत मेरे खवाब्बों में दरार नहीं डाल सकती. है मगर यकीन तभी आ सकता है जब मुझे तजुरबा है . वो क्या है की इल्म से आज़ादी की दायरा बड़ा हो जाता है. जीतनी बंदिशे कम हो गी मंजिल का रास्ता छोटा होता चला जाये गा . दिशा, दिशा की पहचान पाना सब से बड़ा सवाल ? आसन है जिस तरह बाहर जाने से पहले हम इन्क्वायरी करते है दूसरों से पूछ ताछ करते है हर तरह से नेगेटिव पोसिटिव का आंकलन तैयार करते है . ठीक वेसे ही समझदारी से कदम रखिये. कामयाबी हर वक़्त साथ हो गी .अक्सर ज़रूरी नहीं कामयाबी की और बढता कदम सच्चा हो अच्छा हो, क्यूकी सच्चाई ,अच्छाई और कामयाबी कभी दोस्त बन ही नहीं सकते . तो साम दाम दंड भेद से आगे की और रुख करे , रास्ता अपने आप बनता चला जाये गा. बस हिम्मत नहीं छोड़ना. सपने देखना कभी कम न करना….

By: RG       

Sunday, 14 August 2016

बस एक ही जीवन काफी है क्या?: आज़ाद भारत

बस एक ही जीवन काफी है क्या?: आज़ाद भारत: आज़ादी की सुबह बालकनी में खुले आसमान में देख रही थी , रंग बिरंगी गोते खाती हुई पतंगे , हवा में घुलता गुलाल , लहराता हुआ ...

आज़ाद भारत

आज़ादी की सुबह बालकनी में खुले आसमान में देख रही थी, रंग बिरंगी गोते खाती हुई पतंगे, हवा में घुलता गुलाल, लहराता हुआ हमारा तिरंगा चारो और ख़ुशी का मस्ती का माहोल...   
आज 15 अगस्त भारत की आज़ादी का दिन , 1857 के 159 बरस या आज़ादी के 69 साल . 1857 का गदर कहे या आज़ादी की पहली लड़ाई ? आजादी के जश्न में 69 साल पलक झपकते ही निकल गये . देश कहा को था और कहा को चला ? कल भी देश सोने की चिड़िया था आज भी कहलाता है . पहले भी हिन्दुस्तानी विदेशी वस्तुओं से परभावित थे आज भी है . बदलाव हुआ भी है के नहीं, हुआ है ना टेक्नोलॉजी बदली, हमारा सविधान बदला मगर हमारी जड़े अभी भी वही है यानि के हमारी परंपरा, संस्कृति, रीत-रिवाज़ . कही कही विचारधारा भी ....
अभी भी हिन्दू मुस्लिम का मुद्दा ज्यों का त्यों है . दलित और गरीब के साथ अभद्र व्यव्हार, महिलाओं के साथ बुदसलूकी आम सी बात है... बेरोज़गारी सब से बड़ी समस्या है . हमारे देश के 50% से ज्यादा आबादी यंग है . किसी भी देश के लिए ये गर्व की बात है . लेकिन हमारा यूथ ही सब से ज्यादा परेशान है .कभी अच्छे इंस्टिट्यूट में ऐडमशन के लिए तो कभी नौकरी के लिए.  
विकास तो हो रहा है बस दिशा की पहचान नहीं लक्ष क्या होना चाहिए फिर से पीछे की और या आगे बढना  है  ? एक सभ्य समाज के लिए हमारी मानसिकता का विकसित होना सब से ज्यादा जरुरी है . हर एक क्षेत्र में सब को अपनी अपनी काबिलियत के अनुसार काम मिले . छोटे, बड़े, अमीर, गरीब का अलाप बंद हो जाये तो हमारे देश की ताकत कई गुना हो जाये गी.
जिस तरह हम मुसीबत या प्रकृतिक आपदा आने पर सब एक हो जाते है . क्या हम हमेशा साथ नहीं हो सकते ? रोज़ अख़बार की सुर्ख़ियों को पढ़ के अफ़सोस जताते है . भ्रष्ट भी हमी है और भ्रष्टचारी भी . हम क्यू भूल जाते है बापू की कही हुई बातों को ? गीता में लिखित शालोकों को . क्यू याद नहीं आती हमे भगत सिंह और राजगुरु की कुर्बानियां. क्यू अनदेखी कर देते है खून से लिखी कहानियां .          
आंखे मूँद लेने से केवल अँधेरा होता है , सपनो का जनम भी बंद आँखों में ही होता है . एक सपना सच्चे और अच्छे विक्सित भारत का, सपना उन्नति का, बराबरी का ,सपना सरहद पे बैठे नोजवानों की सुरक्षा का, सपना भारत माँ की गरीमा का ....
                                जिंदाबाद !


 By:RG         

असान दिशा-ज्ञान