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Wednesday, 11 February 2015

आगोश - लेखिका- नवीन राणा



अब थक गए हम इन् तन्हाइयों से लड़ते लड़ते,
अब ये भी याद नहीं के जाना कहाँ है ....

अब बंद होने लगी हैं पलकें भी भरी हो कर,
भूल गए के नजारा क्या है....

अब चाहत  नहीं दुनिआ को पाने की ,
वरना सपना तो आस्मां छू जाना है....

अब पनाह दे दे अपने आगोश में ले कर ,
अब इस पल तेरी बाँहों में ही सो जाना है.....

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असान दिशा-ज्ञान