कर्मभूमि ये धरा है मेरी,
जिसकी गोद मे मेरा बचपन खेला!
आज जब मानव बढ़ रहा है तरक्की की राह पर,
तो कैसे छोड़ दूं मैं उसे अकेला!!
वनों से था जिसका सौन्दर्य,
पशु पक्षियों का जहाँ लगता था मेला!
आज वो पिंजरे मे बंद तरसते हैं अपनी आज़ादी को,
तो कैसे छोड़ दूं मैं उन्हें अकेला!!
हर तरफ पहाड़ों का साया था,
झीलों और झरनों से था जिसका यौवन अलबेला!
अब रेगिस्तान मे सिमट कर रह गयी तन्हाई जिसकी,
तो कैसे छोड़ दूं मैं उसे अकेला!!
हमेशा चाही है खुशी जिसने हमारे लिए,
हम पर आई हर विपदा को है जिसने झेला!
आज वोही माँग रही है हमसें हमारा साथ,
तो कैसे छोड़ दूं मैं उसे अकेला!!
आओ मिलकर रोकें इस प्रकृति विनाश को,
फिर से शाम की सूचक बने गोधुलि बेला!
लौटाएँगे धरती को उसका सौन्दर्य वापस,
नहीं होने देंगे उसे कभी अकेला!!
जिसकी गोद मे मेरा बचपन खेला!
आज जब मानव बढ़ रहा है तरक्की की राह पर,
तो कैसे छोड़ दूं मैं उसे अकेला!!
वनों से था जिसका सौन्दर्य,
पशु पक्षियों का जहाँ लगता था मेला!
आज वो पिंजरे मे बंद तरसते हैं अपनी आज़ादी को,
तो कैसे छोड़ दूं मैं उन्हें अकेला!!
हर तरफ पहाड़ों का साया था,
झीलों और झरनों से था जिसका यौवन अलबेला!
अब रेगिस्तान मे सिमट कर रह गयी तन्हाई जिसकी,
तो कैसे छोड़ दूं मैं उसे अकेला!!
हमेशा चाही है खुशी जिसने हमारे लिए,
हम पर आई हर विपदा को है जिसने झेला!
आज वोही माँग रही है हमसें हमारा साथ,
तो कैसे छोड़ दूं मैं उसे अकेला!!
आओ मिलकर रोकें इस प्रकृति विनाश को,
फिर से शाम की सूचक बने गोधुलि बेला!
लौटाएँगे धरती को उसका सौन्दर्य वापस,
नहीं होने देंगे उसे कभी अकेला!!
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ReplyDeletele aaenge youwan fir se
ReplyDeletejheel, pahaaron, nadiyon ke hum
simat rahi gar dhara ret me
nav ankur hum laga dum lenge
fir chatkon ka jamghat hoga
man kolahal me khota hoga
bargad ka daal jo sookh gya hain
munni ka man jo toot gya hai
le aaenge koyal fir se
sookhe loolhe peepal par hum
golu ka chehra chamak uthega
dekh lataaein sundar sundar
bagiya me man fir damak uthega
le aaenge youwan fir se
jheel, pahaaron, nadiyon ke hum..!
Very nice add on. Thanks for sharing ur beautiful thought here.. :-)
Deletebeautiful write up sir..couldn't help adding a few more lines to it..:)
ReplyDeleteशुक्रिया सुमित जी
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